धुआंधार खर्च करने की आदत पर काबू
पाने और वित्तीय लक्ष्य हासिल करने की खातिर पर्याप्त बचत करने के लिए क्या करना
चाहिए -
कई लोग सुबह जल्द उठने, जॉगिंग करने, सेहत के लिए
फायदेमंद नाश्ता करने के कई प्लान रह-रहकर बनाते रहते हैं, लेकिन
इन पर अमल की सूरत नहीं बन पाती है। प्राय: अपने वित्तीय लक्ष्यों के साथ भी वे
ऐसा ही बर्ताव करते हैं। हम सभी जानते हैं कि सोच-समझकर खर्च करना और नियमित बचत
करना भविष्य के लिए वित्तीय सुरक्षा के मूल मंत्र हैं। फिर भी कई लोग उतनी बचत
नहीं कर पाते, जितनी वे चाहते हैं। कुछ के पास जरूरी सरप्लस
इनकम नहीं होती क्योंकि खर्च ज्यादा होने के कारण निवेश के लिए उनके पास कुछ बचता
ही नहीं। दूसरे कुछ लोग बचत का मुद्दा टालते रहते हैं और भविष्य की जरूरतों पर
तात्कालिक आवश्यकताओं को तरजीह देते हैं। दिल्ली में काम करने वाल साइकोलॉजिस्ट
प्रेरणा कोहली कहती हैं, 'युवा लोग प्राय: सोचते हैं कि बचत
करने के लिए तो अभी पूरा जीवन पड़ा है। उन्हें बचत की अहमियत समझ में आती तो है,
लेकिन पैसा खर्च कर वे तुरंत आनंद लेना चाहते हैं।'
तो क्या इससे बचने का कोई रास्ता है? कुछ लोग कहीं पहुंचने में देरी से बचने के लिए अपनी घड़ी को 10-15 मिनट फास्ट कर दिया करते हैं। हालांकि उन्हें असल डेडलाइन पता होती है,
फिर भी सेट की गई काल्पनिक डेडलाइन पर पहुंचने के लिए दिमाग पर जोर
पड़ता ही है। ऐसी ट्रिक्स फाइनेंशियल मामलों में भी बहुत उपयोगी होती हैं। हम ऐसी
ही कुछ ट्रिक्स के बारे में यहां बता रहे हैं, जिनसे आपको
ज्यादा बचत करने में मदद मिल सकती है। अगर आप उन लोगों में से हैं, जो पैसा नहीं बचा पाते तो आप खुद पर ये ट्रिक्स आजमाएं। उम्मीद है कि आपकी
सेविंग्स रेट काफी बढ़ जाएगी।
इंक्रीमेंट का निवेश करें
क्या आपको एनुअल इंक्रीमेंट मिल चुका है? इस बढ़ोतरी के कुछ हिस्से का असर तो इंफ्लेशन में इजाफे के चलते खत्म हो
जाएगा, लेकिन इस बात की गुंजाइश ज्यादा है कि आपके पास फिर
भी सरप्लस ठीक-ठाक रहेगा। जिनके पास अच्छा बैंक बैलेंस हो, वे
प्राय: ऐसी रकम को फटाफट खर्च कर डालते हैं। हालांकि इसके चलते ज्यादा खर्च करने
की उनकी आदत बन जाती है। तो ज्यादा सरप्लस के मुताबिक अपनी जीवनशैली न बदलें। इसके
बजाय निवेश में बढ़ोतरी करें और इस रकम को ऑटो मोड में डाल दें ताकि आप चाहें तो
भी खर्च के लिए इस पर हाथ न डाल पाएं। इसके लिए किसी म्यूचुअल फंड में एसआईपी जैसा
मंथली इनवेस्टमेंट शुरू कर दें। आप रेकरिंग बैंक डिपॉजिट का रास्ता भी पकड़ सकते
हैं। इस तरह आपकी बढ़ी इनकम का एक हिस्सा ऑटोमैटिक तरीके से महीने के शुरू में
कटकर इन इंस्ट्रूमेंट्स में चला जाया करेगा। इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल बोनस जैसी
साल में एक बार मिलने वाली रकम के लिए भी किया जा सकता है। हालांकि एक सावधानी
बरतें। इंक्रीमेंट या बोनस की पूरी रकम का निवेश न कर दें। कुछ पैसा खर्च में हुई
बढ़ोतरी को पूरा करने और सालभर कड़ी मेहनत के बाद खुद को इनाम देने के लिए रखें।
एकाउंट्स अलग करें
कई बैंक एकाउंट्स को मैनेज करना मुश्किल होता है। हालांकि कभी-कभी एक
एक्सट्रा एकाउंट होने से आप अपनी सेविंग्स को बेहतर ढंग से मैनेज कर सकते हैं। तो
इनवेस्टमेंट और सेविंग्स के लिए एक अलग बैंक एकाउंट का उपयोग करें। उसी तरह जैसे
दादी-नानी जैम या अचार के जार का उपयोग किया करती थीं। इस 'सेविंग
एंड इनवेस्टमेंट' एकाउंट के लिए डेबिट कार्ड का उपयोग न
करें। यह रणनीति उन लोगों के बहुत काम की होती है, जो बचत
करने में खुद को बिल्कुल ही असमर्थ पाते हैं। मुंबई की एजुकेशनलिस्ट शहनाज
पोहोवाला अपनी इनकम को तीन भागों में बांटती हैं। उन्होंने बताया, 'एक हिस्सा ईएमआई जैसे महीने के तय खर्चों के लिए होता है। दूसरा हिस्सा
ग्रॉसरी और घर के खर्च के लिए होता है। तीसरा हिस्सा सेविंग्स और इनवेस्टमेंट्स के
लिए होता है।' इससे होता यह है कि किसी महीने में अगर खर्च
ज्यादा हो तो सेविंग्स पर उसका असर नहीं पड़ता।
मुंबई में रहने वाली दो बच्चों की मां तृप्ति लोखंडे भी इसी तरह की
स्ट्रैटेजी अपनाती हैं। वह अपनी हाउसहोल्ड इनकम को दो खातों में रखती हैं। एक खर्च
के लिए और दूसरा बचत के लिए। उनके पास सेविंग्स एकाउंट के लिए डेबिट कार्ड है, लेकिन वह इसका इस्तेमाल नहीं करतीं। वह उतना ही खर्च करती हैं, जो विभिन्न इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करने के बाद बचता है।
टैक्स डिपार्टमेंट से मदद लें
ऋत्वेश मिश्रा की कंपनी जब कर्मचारियों से फाइनेंशियल ईयर के लिए
टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट्स के बारे में पूछती है तो वह उस पर ध्यान नहीं देते
हैं। दिल्ली में मार्केटिंग प्रोफेशनल मिश्रा ने कहा, 'मैं सेक्शन 80सी के तहत पूरे 1.5 लाख रुपये के डिडक्शन का इस्तेमाल करता हूं और हाउस रेंट भी चुकाता हूं,
लेकिन मैं इसका डिक्लेयरेशन कंपनी को तुरंत नहीं देता हूं।' इसके चलते उनकी सैलरी से काफी टैक्स शुरू में ही कटने लगता है। टैक्स
प्रोफेशनल्स इस हरकत पर सवाल उठाएंगे, लेकिन मिश्रा इस रवैये
के चलते साल के अंत में काफी बचत कर ले जाते हैं। वह असल दस्तावेजों के साथ अपना
डिक्लेयरेशन दिसंबर में जमा करते हैं। तब तक फाइनेंशियल ईयर के लिए देय लगभग पूरा
टैक्स उनकी सैलरी से कट चुका होता है। बाकी तीन महीनों में मिश्रा को बिना किसी
टैक्स डिडक्शन के पूरी सैलरी मिलती है।
हालंकि इस स्ट्रैटेजी में एक बात का खास ध्यान रखना चाहिए। अगर आपने
कैलकुलेशन में चूक की तो ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ सकता है। टैक्स रिटर्न फाइल करने
पर इसका रिफंड आपको मिल जाएगा, लेकिन इस प्रोसेस में कई महीने लग जाते हैं। इसके
अलावा साल के बाद के हिस्से में आपकी टेकहोम सैलरी काफी ज्यादा रहेगी। इसका फायदा
आप तभी उठा पाएंगे, जब इस सरप्लस को आप इनवेस्ट करें। इसे
बेमतलब खर्च कर देने से बात नहीं बनेगी।
खुद पर लग्जरी टैक्स लगाएं
हम सभी जीवन में अच्छी चीजों का आनंद लेने के लिए कड़ी मेहनत करते
हैं। ऐसे में परिवार के साथ हॉलिडे पर जाने, दोस्तों के साथ डिनर करने, अपने
फेवरेट ब्रांड का स्टाइलिश गारमेंट खरीदने या तमाम फीचर्स से लैस कोई सेलफोन
खरीदने से मना करने की कोई तुक नहीं बनती। हालांकि ये काम करते हुए याद रखें कि
सेविंग्स में भी इतनी ही रकम लगा दें। इस बचत को लग्जरी टैक्स मानें या अनियोजित
शॉपिंग के लिए जुर्माना। इसे कुछ मौकों पर आजमाएं, फिर
धीरे-धीरे यह आदत बन जाएगी। यह रणनीति दो तरीके से काम करती है। पहले तो आप जो रकम
निवेश करते हैं, उससे आपका इनवेस्टमेंट एकाउंट बढ़ता है।
दूसरी बात यह होती है कि चूंकि आप खर्च के मुताबिक इनवेस्टमेंट कर रहे होते हैं तो
शॉपिंग की हुड़क आपकी जेब से डबल रकम निकलवाती है। ऐसा होने पर बेमतलब की चीजों पर
पैसा खर्च करने की आदत छूट सकती है।
EMI चुकाते रहें
लॉन्ग टर्म लोन चुकाने में ईएमआई की आदत बन जाती है। कुछ समय बाद हर
महीने इस मद में रकम निकलने से आप पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में अगर आप
पूरा लोन चुका दें तो उसके बाद क्या होगा? सबसे पहले तो इस एडिशनल सरप्लस का आनंद लेने का मन
करता है और इसे दूसरे खर्चों में लगाने की हुड़क पैदा होती है। हालांकि अपनी
सेविंग्स को ऑटोमैटिक मोड में डालने की तरह ईएमआई पेमेंट्स का खत्म होना भी इस
सरप्लस को सेविंग्स में डालने का एक बड़ा मौका होता है। कुछ ईएमआई पेमेंट्स बाकी
हों, तभी आप तय कर लें कि ईएमआई वाली रकम बाद में आप कहां
निवेश करने वाले हैं। आखिरी ईएमआई चुकाने के बाद वही रकम अपनी पसंद के इनवेस्टमेंट
इंस्ट्रूमेंट में लगाना शुरू करें। सलन, आप किसी म्यूचुअल
फंड में एसआईपी शुरू कर सकते हैं या कोई रेकिरंग बैंक डिपॉजिट खोल सकते हैं। आपके
हाथ से जाने वाली मंथली रकम में चूंकि बदलाव नहीं होगा तो आपको कोई अतिरिक्त दबाव
भी नहीं आएगा।
इनवेस्टमेंट्स में ढिलाई न करें
किसी इनवेस्टमेंट के साथ खुद को लॉक करना कुछ बेकार सा आइडिया लग
सकता है, लेकिन लंबी अवधि तक निवेश करते रहने का यह एक अच्छा
तरीका भी है। एएमएफआई के डेटा से पता चलता है कि इक्विटी फंड्स में आने वाली करीब 70
पर्सेंट रकम इनवेस्टमेंट के दो साल के भीतर रिडीम कर ली जाती है।
इसके चलते अधिकतर निवेशक बाद के वर्षों में म्यूचुअल फंड्स को मिलने वाले अच्छे
रिटर्न से वंचित रह जाते हैं। इसी मोड़ पर लॉक-इन मददगार हो सकता है। आप अपना पैसा
ऐसे लॉन्ग टर्म सेविंग ऑप्शंस में लगाएं, जो जल्द विदड्रॉल
को हतोत्साहित करते हों। पीपीएफ में निवेश 15 साल के लिए
होता है, लेकिन आप पांच साल के बाद इसमें से कुछ शर्तों के
साथ पैसा निकाल भी सकते हैं। नेशनल पेंशन स्कीम को रिटायरमेंट से पहले टच नहीं
किया जा सकता है। इंश्योरेंस पॉलिसी में लॉक-इन पीरियड 15-20 साल का होता है और पॉलिसी लैप्स कर जाने के डर से लोग हर साल प्रीमियम जमा
करते रहते हैं। इंडियाफर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस में मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ आर
एम विशाखा ने कहा, 'इनवेस्टमेंट टूल्स खंगालते वक्त कस्टमर
प्राय: ऐसे इंस्ट्रूमेंट चुन लेते हैं, जिनमें लिक्विडिटी की
ज्यादा सहूलियत होती है। यह बात अजीब लगती है कि अगर कोई बच्चे की एजुकेशन के लिए
फंड तैयार कर रहा हो तो वह भी लिक्विडिटी की फिराक में रहे।'
पुणे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर पुरोहित उन लोगों में से हैं, जो लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट में लॉक-इन की अहमियत समझते हैं। उनकी रणनीति
यह है कि लॉन्ग टर्म सेविंग्स को किसी भी सूरत में हाथ न लगाया जाए। उन्होंने कहा,
'मैं पहले निवेश करता हूं, फिर सैलरी में से
बची रकम से काम चलाता हूं। अगर इसके चलते खर्च घटाने की नौबत आती है, तो उससे मैं तालमेल बैठाता हूं। मैं अपनी सेविंग्स को हाथ नहीं लगाता।'
सेविंग्स में मददगार शख्स चुनें
कभी-कभी कोई बुरी आदत छोड़ने के लिए आपको मॉनिटर की जरूरत होती है।
अपनी पसंद से किसी को यह जिम्मा दे दें तो वह आपको वित्तीय मामलों में सही राह पर
रखने में मददगार हो सकते हैं। अगर आप खुद अपने वित्तीय मामले नहीं संभाल सकते तो
किसी दोस्त या परिवार के सदस्य की मदद लें। वे रेगुलेटर की तरह काम कर सकते हैं और
आपकी बचत और खर्च पर नजर रख सकते हैं। अगर आप ट्रैक से हटेंगे तो वे आपको आगाह कर
सकते हैं। दूसरा रास्ता यह है कि आप और आपके मददगार एक-दूसरे से दोस्ताना होड़ कर
सकते हैं। सेविंग के लक्ष्य बनाएं और एक-दूसरे को मात देने की कोशिश करें या यह देखें
कि कौन खर्च के मामले में बेहतर संयम दिखा सकता है। आप रिवॉर्ड और पेनाल्टी का
सिस्टम भी बना सकते हैं। लोखंडे का कहना है कि अपने पति की वित्तीय स्थिति पर नजर
रखने से उनके परिवार को काफी फायदा हुआ। वह बताती हैं कि उनके परिवार में
खाने-पीने के शौकीन लोग हैं, लिहाजा इसका बजट बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा,
'हम बाहर खाने-पीने का एक बजट बनाकर रखते हैं और एक-दूसरे को याद
दिलाते रहते हैं कि यह लिमिट पार न हो।'
अपने कदम पर दोबारा सोचें
कभी-कभी खर्च करने की ललक से पार पाना बेहद मुश्किल होता है। एकबार
के लिए तो यह फिर भी ठीक है, लेकिन मामला काफी बढ़ जाए तो आपकी जेब में सूराख हो
सकता है। इस ललक से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि निर्णय करने में पर्याप्त
समय लिया जाए। हो सकता है कि आपकी नजर किसी स्मार्टफोन, ड्रेस
या फर्नीचर पर महीनों से टिकी हो कि उसे खरीदना है। तो ऐसा करें कि खरीदारी करने
से पहले उसकी जरूरत के बारे में एक बार सोच लें। अपनी परचेज को अपनी ऑनलाइन शॉपिंग
कार्ट में छोड दें या सेलर से कहें कि कुछ दिन बाद मिलते हैं। इस दौरान इस खरीदारी
के नफा-नुकसान के बारे में सोच लें और यह देखें कि इसकी जरूरत है कि यूं ही मन
ललचा रहा है। अगर बाद वाली बात हो तो क्या जो आप खरीदने जा रहे हैं, उसका उतना दाम चुकाना जायज है। इस तरह सोचने पर कभी-कभार मन काबू में आ
जाता है।
भविष्य पर नजर रखें
रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए बचत की जल्द शुरुआत करना बेहतर
रहता है। फिर भी कई लोग ऐसा नहीं करते। इसकी एक वजह यह है कि युवा अपने बुढ़ापे के
बारे में प्राय: सोच नहीं पाते हैं। अधिकतर लोग करीब दिख रही चीजों के इंतजाम को
तरजीह देते हैं। इसका अर्थ यह है कि ऐसे लोग रिटायरमेंट सेविंग्स के लिए पैसा अलग
करने के बजाय अगले साल यूरोप की ट्रिप पर जाने में अपनी बचत खर्च करने को तरजीह
देते हैं। अगर आप 30 साल से कम उम्र के हों तो रिटायरमेंट बहुत दूर की
बात लगती है और उसके लिए बचत के बारे में सोचा भी नहीं जा रहा होगा। ऐसी मानसिक
स्थिति से निपटने के लिए अपने गोल को साफ-साफ देखने की कोशिश करें। उसे लिखें,
एक्सेल शीट बनाएं और देखें कि लक्ष्य कितना दूर है और उसे पाने के
लिए कितनी बचत करनी होगी और किस तरह करनी होगी।
अपने भविष्य की पिक्चर बनाने की कोशिश करने से रिटायरमेंट के बाद के
दिनों के लिए बचत की शुरुआत करने में मदद मिलती है। मन हो तो किसी फोटो एजिंग
सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करें और देखें के बूढ़े होने पर आप कैसै दिखेंगे। उस तस्वीर
को ध्यान में रखते हुए बचत करें।
साभार