अक्सर जब आप व्यस्त
होते हैं तो एटीएम कार्ड पिन नंबर के साथ अपने किसी नजदीकी और विश्वासपात्र को
देकर पैसे निकालने की बात कह देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा करना महंगा साबित हो सकता
है। ऐसा ही एक महंगा सौदा सामने आया बंगलूरू से जब एक महिला ने मातृत्व अवकाश के
दौरन अपने पति को एटीएम और पिन कार्ड देकर पैसे निकालने को दिया। बता दें कि
बैंकिग नियम के अनुसार एटीएम कार्ड अहस्तांतरणीय होता है और उसे एकाउंट होल्डर के
अलावा किसी को भी प्रयोग करने की इजाजत नहीं होती है।
मामला नवंबर 2013 का है जब माराठल्ली में रहने वाली वंदना ने अपने पति राजेश कुमार को 25,000 रुपये निकालने के लिए डेबिट कार्ड पिन नंबर के साथ दिया। पति एरिया के लोकल
एसबीआई एटीएम में गया। राजेश ने कार्ड स्वैप किया, मशीन से रशीद तो आई लेकिन पैसा नहीं निकला।
रसीद में लिखा आया कि पैसे निकल गए हैं लेकिन पैसे एटीएम से निकले नहीं। राजेश ने तुरंत एसबीआई कस्टमर केयर में फोन कर जानकारी दी। चौबीस घंटे के बाद भी पैसा एकाउंट में नहीं आने पर वह एसबीआई की ब्रांच भी गए और शिकायत दर्ज कराई। लेकिन उन्हें उस वक्त झटका लगा जब एसबीआई ने कुछ दिनों में केस को यह कहते हुए बंद कर दिया कि ट्रांजैक्शन सही था और ग्राहक को पैसा मिल गया। एसबीआई से एटीएम के अहस्तातंरणीय नियम की जानकारी भी दी।
मामला कोर्ट में गया। वंदना ने बंगलूरू के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल फोरम का दरवाजा खटखटाया। मामला चार सालों तक एक के बाद दूसरे कोर्ट में जाता रहा। मामले ने तब और तूल पकड़ा जब राजेश ने एटीएम में लगे सीसीटीवी फुटेज को हासिल किया, जिसमें यह दिखाई दे रहा था कि मशीन से पैसा नहीं निकला।
फुटेज के साथ शिकायत करने पर बैंक की जांच समिति ने यह कहते हुए पीड़ित की मांग को ठुकरा दी और कहा कि खाताधारक वंदना फुटेज में नहीं दिख रही हैं और उनकी जगह कोई दूसरा (पति) पैसा निकालते नजर आ रहे हैं। बैंक ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि पिन साझा किया गया, इसलिए केस बंद।
चौंकाने वाली बात यह है कि एटीएम से निकाली गई 25 हजार की रकम को पाने के लिए कोर्ट में साढ़े तीन सालों तक केस लड़ने के बाद भी वंदना और उसके पति के हाथ निराशा ही लगी। कोर्ट ने भी आखिरकार बैंक का साथ दिया और एसबीआई के नियम 'पिन शेयर हुआ, केस खत्म' को मानते हुए बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया है। 29 मई, 2018 को दिए फैसले में कोर्ट ने बैंक की बात को सही माना और कहा कि खुद नहीं जा सकने की हालत में वंदना को सेल्फ चेक या फिर अधिकार पत्र देकर पति को पैसा निकालने के लिए भेजना चाहिए। कोर्ट ने यह आदेश देते हुए केस को खत्म कर दिया।
रसीद में लिखा आया कि पैसे निकल गए हैं लेकिन पैसे एटीएम से निकले नहीं। राजेश ने तुरंत एसबीआई कस्टमर केयर में फोन कर जानकारी दी। चौबीस घंटे के बाद भी पैसा एकाउंट में नहीं आने पर वह एसबीआई की ब्रांच भी गए और शिकायत दर्ज कराई। लेकिन उन्हें उस वक्त झटका लगा जब एसबीआई ने कुछ दिनों में केस को यह कहते हुए बंद कर दिया कि ट्रांजैक्शन सही था और ग्राहक को पैसा मिल गया। एसबीआई से एटीएम के अहस्तातंरणीय नियम की जानकारी भी दी।
मामला कोर्ट में गया। वंदना ने बंगलूरू के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल फोरम का दरवाजा खटखटाया। मामला चार सालों तक एक के बाद दूसरे कोर्ट में जाता रहा। मामले ने तब और तूल पकड़ा जब राजेश ने एटीएम में लगे सीसीटीवी फुटेज को हासिल किया, जिसमें यह दिखाई दे रहा था कि मशीन से पैसा नहीं निकला।
फुटेज के साथ शिकायत करने पर बैंक की जांच समिति ने यह कहते हुए पीड़ित की मांग को ठुकरा दी और कहा कि खाताधारक वंदना फुटेज में नहीं दिख रही हैं और उनकी जगह कोई दूसरा (पति) पैसा निकालते नजर आ रहे हैं। बैंक ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि पिन साझा किया गया, इसलिए केस बंद।
चौंकाने वाली बात यह है कि एटीएम से निकाली गई 25 हजार की रकम को पाने के लिए कोर्ट में साढ़े तीन सालों तक केस लड़ने के बाद भी वंदना और उसके पति के हाथ निराशा ही लगी। कोर्ट ने भी आखिरकार बैंक का साथ दिया और एसबीआई के नियम 'पिन शेयर हुआ, केस खत्म' को मानते हुए बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया है। 29 मई, 2018 को दिए फैसले में कोर्ट ने बैंक की बात को सही माना और कहा कि खुद नहीं जा सकने की हालत में वंदना को सेल्फ चेक या फिर अधिकार पत्र देकर पति को पैसा निकालने के लिए भेजना चाहिए। कोर्ट ने यह आदेश देते हुए केस को खत्म कर दिया।