Friday, June 1, 2018

इंश्योरेंस लेने से पहले जान लें ये बातें


कमाई शुरू करने पर वित्तीय समझदारी के लिहाज से पहला काम इंश्योरेंस कवर लेने का होना चाहिए। हालांकि इसके लिए बीमा की समझ होना और इसका ठीकठाक अंदाजा लगाना जरूरी है कि कितने कवर की जरूरत है। डिक्शनरी में इंश्योरेंस के बारे में कहा गया है कि यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें कोई कंपनी या 
सरकार एक तय प्रीमियम के भुगतान के बदले में किसी विशेष नुकसान, बीमारी या निधन की सूरत में मुआवजे की गारंटी देती है। जीवन बीमा के मामले में यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें कोई कंपनी एक तय प्रीमियम लेती है और कवर लेने वाले शख्स का निधन होने पर उसके आश्रित को कंपनसेट करती है। 

यही इंश्योरेंस की परिभाषा है। जो भी प्रॉडक्ट या सेवा इस परिभाषा पर फिट नहीं हो, वह बीमा नहीं है, भले ही उसे कोई बीमा कंपनी ही बेच रही हो। कितने का बीमा कवर लेना चाहिए? इस सवाल का जवाब कई तरीकों से दिया जा सकता है, लेकिन बुनियादी बात यह है कि कवर आपकी मौजूदा सालाना इनकम का दस गुना होना चाहिए। यह परिवार के दूसरे सदस्यों की आमदनी, एसेट्स, मकान आदि के आधार पर बदल सकता है, लेकिन दस साल की इनकम से कम की रकम प्राय: काफी नहीं रहती है।

पर्याप्त इंश्योरेंस है या नहीं
अब देखें कि आपके पास पर्याप्त इंश्योरेंस है या नहीं? दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर लोगों को पता है कि वे कितना प्रीमियम चुका रहे हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि अगर उनका निधन हो जाए तो उनके परिवार को कितना पैसा मिलेगा। असल में यह विचित्र बात नहीं है क्योंकि लाइफ इंश्योरेंस बिजनस में सफलता का पैमाना यह नहीं है कि कस्टमर्स कितने का कवर ले रहे हैं, बल्कि यह है कि कस्टमर्स कितनी रकम चुका रहे हैं। इसके लिए यह इंडस्ट्री यह सुनिश्चित करती है कि इसके अधिकतर प्रॉडक्ट्स दरअसल इंश्योरेंस न हों और ऐसे महंगे प्रॉडक्ट्स हों, जिनमें वैधानिक जरूरत पूरी करने के लिए इंश्योरेंस का कुछ हिस्सा जुड़ा हो। 

यह ऑफिशियल चालबाजी है। इंश्योरेंस रेग्युलेटर से आपके हितों की रक्षा की उम्मीद की जाती है, लेकिन वह भी इंडस्ट्री की सफलता इस आधार पर आंकता है कि कस्टमर्स से इंडस्ट्री कितनी रकम ले रही है, न कि इस आधार पर कि कितना इंश्योरेंस कितने लोगों को दिया गया है। इरडा की सालाना रिपोर्ट या देश में किसी भी पब्लिश्ड डेटा से इसका पता नहीं चलता कि लोग किस सीमा तक इंश्योर्ड हैं। इरडा 'इंश्योरेंस डेंसिटी' का सहारा लेता है, जो कस्टमर्स से प्रति व्यक्ति लिए जाने वाले प्रीमियम और जीडीपी का अनुपात है। 

टर्म इंश्योरेंस 

इन नंबरों से यह पता नहीं चलता कि कितना इंश्योरेंस कवर दिया गया। इससे केवल यह पता चलता है कि इंडस्ट्री ने लोगों से कितना पैसा लिया। असल सवाल यह है कि अगर कस्टमर का निधन हो तो उसके परिवार को कितना पैसा मिलेगा? कितने कस्टमर्स के पास कितनी रकम का कवर है? दिए गए कवर और लिए गए प्रीमियम का अनुपात क्या है? ये आंकड़े या तो हैं नहीं या इन्हें छिपाए रखा जाता है। 

रेग्युलेटर के इस रुख की झलक आपको इंश्योरेंस प्रॉडक्ट बेचने वाले के बर्ताव में दिखती है। एजेंट्स चाहे जितने तरीके आजमाएं, आपको केवल इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि इंश्योरेंस कवर आपकी करेंट इनकम का दस गुना हो। अगर आप इस पर टिके रहे तो आप टर्म इंश्योरेंस ले लेंगे। इसकी वजह यह है कि दूसरे इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स में 10 साल के इनकम के बराबर लाइफ कवर पाने में आपकी पूरी इनकम बतौर प्रीमियम चली जाएगी। 

बीमा कवर लेने का बुनियादी सिद्धांत यह है कि बीमा और निवेश को अलग-अलग रखें और केवल प्योर इंश्योरेंस यानी टर्म इंश्योरेंस खरीदें। देश में इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स बेचने वालों ने ऐसे चलन को बढ़ावा दिया है कि लोग टर्म इंश्योरेंस इसलिए नहीं लेना चाहते कि इससे तो उन्हें 'कुछ नहीं मिलेगा।' एजेंट्स को दरअसल दूसरे प्रॉडक्ट्स पर ज्यादा कमीशन मिलता है। ऐसे सिस्टम पर कमेंट करते वक्त दरियादिली नहीं दिखाई जा सकती। यह सिस्टम इसलिए है क्योंकि रेग्युलेटर सोया हुआ है, एजेंट्स धूर्त हैं और कस्टमर बेवकूफ बन जाते हैं। सिस्टम पता नहीं कब बदलेगा, लिहाजा बीमा खरीदने का सलीका आपको ही सीखना होगा।